Wednesday, October 01, 2014


पतनशील पत्नियों के नोट्स
नीलिमा चौहान

अब मैं सुधरने की सोच रही हूं ! घर ,परिवार ,पति ,बच्चे बस इन्हीं के लिए जीना ! अचार मुरब्बे डालने और रायते के लिए बूंदी तक खुद घर में तलने वाली ,पति के आगे जवाबतलब न करने वाली ममतामयी मां और आज्ञाकारी सेविका बनकर सबका दिल जीत लेने वाली औरत बनूंगी ! ईश्वर ने साफ - साफ तौर पर अलग -अलग भूमिकाएं देकर हमें धरती पर भेजा है हम नाहक ही एक दूसरे की फील्ड में टांग अडाते रहते हैं ! अपनी बाउंडरी डिफाइन जितनी महीनता से करूंगी उतना ही पति को अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारियों को निभाने के लिए मजबूर कर पाउंगी ! मुझे तरस आता है उन औरतों पर जो बेफिजू़ल एक बटन पति की कमीज़ पर न टांकने या थाली देर से परोसने पर पति से लताड़ी जाती हैं ! उनपर भी रहम खाने का मन करता है जो औरतें आदमियों की फील्ड में पैर जमाने की जद्दोजहद में न घर की रहती हैं न घाट की ! जितना पति पर निर्भर रहोगी व पति को खुद पर निर्भर रखोगी उतना ही तुम्हारी शादी व प्यार प्रगाढ होगा ! हम सुधर जाएं बस पति तो खुद ब खुद सुधर जाएगा !
अब तो आप सब की ही तरह इस नारीवादी औरतवादी नारेबाजी - बहसबाजी से मैं भी तंग आ चुकी हूं ! सब सही कह रहे हैं ये इंकलाबी ज़ज़्बा हम सब औरतों के खाली दिमागों और नाकाबिलिय़त का धमाका भर है बस ! हम बेकार में दुखियारी बनी फिर रही हैं ! सब कुछ कितना अच्छा, और मिला मिलाया है ! पति घर बच्चे ! हां थोडी दिक्कत हो तो पति की कमाई से मेड भर रख लें तो सारी कमियां दूर हो जाएंगी ! फिर हम सब सुखी सुहागिनें अपने अपने सुखों पर नाज़ कर सकेगीं ! सब रगडे झगडे हमारी गलतफहमियों या ऎडजस्टमेंट की आदत न होने से होते हैं ! बस कभी - कभी एक सवाल मन में उठता है वो यह कि - हम कितने सुखी हैं ये खुशफहमी तभी तक क्यों बनी रहती है जब तक हम सारी घरेलू जिम्मेदारियां हंसते हंसते उठाती रहतीं हैं ! काश जब हम पति के मोजे ,बनियान जगह पर टाइम पर न रखें और सुबह की चाय देरी से दें और फिर भी घर की खुशहाली बनी रहे साथ ही हमारे बारे में नाकाबिल औरत का फतवा न जारी किया जाए ! आस -पास की बराबरी -बराबरी चिल्लाने वाली औरतों का उलझाउ -पकाउ फेमिनिज़्म आपके दाम्पत्य जीवन के रिश्ते की पैरवी में नहीं आएगा तब और आप सोचेगी हाय एक बटन टांक ही देती तो क्या हर्ज हो जाता ??हम पत्नियों को अपना ध्यान गोल रोटियां बनाने ,रसोई के रास्ते पति का दिल जीतने और घर की स्वामिनी कहलाने के योग्य बनने में लगाना चाहिए ताकि हम पति को यह अहसास दिला सकें कि उनका कर्म है ज्यादा कमाना तथा पत्नी को घर व समाज में एक दर्जा दिलाना ! सोचिए अगर पति कमाकर लाने से इंकार कर दे तो सारा दिन बाहर खटता है वह भी तो खुद को मजदूर मान सकता है उसे घर मॆं चैन की दो वक्त की रोटी भी न मिले तो क्यों वह घर लौट के आना चाहे? निहायत ही बुरा ज़माना आ गया है घरों की शांति खत्म हुए चली जा रही है ! हर बात में दमन ,शोषण देखने की आदत पड़ चुकी है कुछ औरतों को ! ये विवाह नाम का रिश्‍ता बहुत समझदार समझौतों से चलता है जो हम पत्नियों को ही करने आने चाहिए ताकि अपने द्वारा बनाए गए सलीकेदार घर में सुव्यवस्था से रहने वाले पति को इस सुख की लत डाल सकें ! ये लत ही उसकी मजबूरी बन जाए यह हमारी स्त्री सुलभ सदिच्छा होनी चाहिए ! बाकी पुरुष की सत्ता को चुनौती की जरूरत ही नहीं पडेगी जब हम विरोध का मौका ही नहीं आने देंगी ! यूं भी पति पत्नी के संबध सब जन्नत में पहले से तय होते हैं उनको निभाने की जिद होनी चाहिए बस !
इसलिए मेरा तो मानना है कि ये बस बददिमागी फितूर है, बदजमानाई हवा है और निखालिस बदजुबानी है कि औरतों की जिंदगी में कोई जुल्‍म पेशतर है। सच बस इतना है कि गोल रोटियॉं, मुरब्‍बे पापड. तक बनाने में नाकाबिल औरतों की काहिली के चलते शादी के इस खूबसूरत रिश्‍ते पर संकट आन पड़ा है जिसे थोड़ी सी तैयारी और मजबूत इरादे से निपटा जा सकता है।  अब मैंने बस इसी इरादे को पूरा करने का हलफ उठाया है। ऊपरवाला मुझे मेरे इरादे में सफल करे ।  आमीन ।